वेश्या की लड़की सुभद्रा कुमारी चौहान
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छाया, प्रमोद की सहपाठिनी थी। प्रमोद, नगर के एक प्रतिष्ठित और कुलीन ब्राह्मण परिवार का लड़का था। और छाया? छाया थी नगर की एक प्रसिद्ध नर्तकी की इकलौती कन्या। नगर में एक बहुत बड़ा राधाकृष्ण का मंदिर था, जहाँ न जाने कितना सदाव्रत रोज बँट जाता था; सैकड़ों साधु-संत मंदिर में पड़े-पड़े भगवद्भजन करते, मनमाना भोजन करते और करते मनमाना अनाचार।
छाया की माँ इसी मंदिर की प्रधान नर्तकी थी। मंदिर को छोड़कर दूसरी जगह वह गाने-बजाने कभी न जाती। मंदिर के प्रधान पुजारी की उस पर विशेष कृपा थी, इसीलिए उसे किसी बात की कमी न थी। गंगा के किनारे उसकी विशाल कोठी थी, जहाँ से सदा संगीत की मधुर ध्वनि आया करती। नगर के संगीत-प्रेमी जब स्वयं ही उसके यहाँ पहुँच जाते, तो राजरानी उन्हें निराश न करती; किंतु वह किसी के यहाँ बुलाने पर गाने के लिए नहीं जाती थी। छाया इसी राजरानी की इकलौती कन्या थी। राजरानी की सारी आशाएँ इसी कन्या के ऊपर अवलंबित थीं। विद्याध्ययन की ओर छाया की अधिक रुचि देखकर राजरानी ने उसे स्कूल में भरती करवा दिया।
छाया नगर की कुछ पुरानी प्रथा के अनुयायियों के विरोध करने पर भी कुलीन घर की लड़कियों के साथ पढ़ते-पढ़ते कॉलेज तक पहुँच गई। और जिस दिन पहले-पहल वह कॉलेज पहुँची, प्रमोद से उसकी पहचान हो गई । यह पहचान, पहचान ही बनकर न रह सकी; धीरे-धीरे वह मित्रता में परिवर्तित हुई और अंत में उसने प्रणण का रूप धारण कर लिया, जिसका परिणाम यह हुआ कि परिवार वालों का विरोध, तिरस्कार और प्रताड़ना न तो प्रमोद को ही उसके पथ से विचलित कर सका न छाया को। विवाह के लिए उन्हें कोर्ट का सहारा लेना पड़ा। कोर्ट में रजिस्ट्री होने के बाद आर्य-समाज मंदिर में उनका विवाह वैदिक रीति से संपन्न हुआ। अग्नि को साक्षी देकर वह दोनों पति-पत्नी के पवित्र बंधन में बंध गए।